दोस्तो आज के इस लेख में आप जानेंगे श्रवण कौशल के बारे में। श्रवण कौशल से क्या आशय है और इसकी प्रमुख विधियों के बारे में आपको बताएंगे।
श्रवण कौशल का क्या आशय है?
भाषण और श्रवण प्राथमिक भाषायी कौशल है, लेखन और वाचन गोण हैं। बच्चों को प्रारंभ से ही भाषा को सुनकर उनमें ध्वनियों का विभेद करने का कौशल विकसित करना चाहिए।
वक्ता के बोलने के साथ उसके भावों को भी पहचानने की छमता का विकास होना आवश्यक है।
1. व्यतिरेकी ध्वनियों को पहचानना:-
ह्रस्व दीर्घ का ज्ञान, श, ष, स का सही उच्चारण, व और ब, छ और क्ष, ऋ का सही उच्चारण, ण और न में अंतर आदि ध्वनियों का ठीक ज्ञान कराया जाना चाहिए।
श्रवण के साथ उच्चारण की शुद्धता तथा उसमें पाए जाने वाले दोष जैसे क्षेत्रीयता या ग्राम्य उच्चारण (स्कूल, स्कूल, पानी, पाणी) असावधानी या शीघ्र उच्चारण के कारण पाए जाने वाले दोष (मास्टर साहब, मास्साब) से बालकों को सावधान करना चाहिए।
2. श्रवण कौशल के विकास की विधियां:-
6 से 8 माह का बच्चा शब्दों को ध्यान से सुनता है तथा वैसा बोलने का प्रयास करता है। मां बोलचाल द्वारा, भाव-भंगिमा द्वारा और विभिन्न क्रियाओं द्वारा भाषा के विकास में बच्चों की सहायता करती है।
12 मास का बच्चा सुनता, समझता और संबंध स्थापित करने लगता है। डेढ़ से 2 साल का बच्चा सुनने और बोलने के प्रति जिज्ञासु होता है। 5 से 6 वर्ष का बच्चा इतनी शब्दावली ग्रहण कर लेता है कि वह सरल वाक्य का प्रयोग कर सकता है तथा शब्दों में समानता तथा अंतर को समझ सकता है।
जब बालक पहली बार प्राथमिक विद्यालय में जाता है तो उसे अन्य बच्चों के बीच अपरिचित होने से डर लगता है। उसकी इस झिझक को आत्मीय बातचीत से दूर करना चाहिए।
वैसे प्रारंभ में भाषा की शुद्धता पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती, किंतु बालकों की झेंप मिट जाने पर शिक्षक को चाहिए कि वह उन्हें शुद्ध, मानक और साहित्यिक भाषा बोलने के लिए प्रेरित करें।
धन्यवाद…।
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